Wednesday, August 19, 2009

बहुपयोगी चुंबक चिकित्सा


होम्योपैथी के जनक डॉ. हैनिमेन ने चुंबक शक्ति का प्रयोग अपने रोगियों पर किया और उन्हें लाभ पहुँचाया। आज भी मॅग्नेट की तीन दवाएँ होम्योपैथी में हैं। डॉ. पैरासेल्सस का कहना है कि चुंबक में कई गुण होते हैं और उसमें से एक यह है कि वह शरीर के द्रवों को आकृष्ट करता है। इसलिए सभी प्रकार की सूजन, पीप आदि के बढ़ने और फोड़े-फुन्सी में चुंबक बहुत गुणकारी है। इंग्लैंड के डॉ. विलियम गिलबर्ट, जो महारानी एलिजाबेथ प्रथम के डॉक्टर थे, ने विद्युत और चुंबक की शक्ति का वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन किया था। वे पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने यह कहा कि पृथ्वी अपने आप में एक बहुत बड़ा चुंबक है। अलबर्ट राय रिसर्च लॅब, अमेरिका के निदेशक डेविस ने भी स्ट्रांग मॅग्नेट का उपयोग कर्क रोग (कैंसर) तथा ट्यूमर पर किया है। इटली में संधिवात, जोड़ों के दर्द, सूजन का इलाज चुंबक द्वारा हो रहा है। चुंबक चिकित्सा शास्त्र ने चिकित्सा जगत में नई क्रांति ला दी है।

चुंबकीय क्षेत्र का पानी पर प्रभाव : वैज्ञानिकों ने सिद्ध किया है कि चुंबकीय क्षेत्र प्रवाही के स्फटीकीकरण केंद्रों में वृद्धि करता है। चुंबकों द्वारा प्रभावित किए गए पानी के भौतिक और रासायनिक गुणधर्मों में परिवर्तन होते हैं।

पानी के कुछ परिमाण जैसे घनता, दुर्वाहीता, पृष्ठ तनाव, विद्युत वहन करने की शक्ति आदि में अनुकूल परिवर्तन होते हैं। पाचन प्रणाली, मूत्र प्रणाली आदि से संबंधित रोगों के उपचारार्थ चुंबकीय जल तैयार करने के अलावा गुलाब जल जैसे अन्य पदार्थों को भी लगभग 12 घंटे तक चुंबकों के ऊपर किसी डॉट लगी शीशी की बोतल में रखकर चुंबकित किया जा सकता है

आँख आने पर दुःखती आँखों के लिए उसे दवाई के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। इसी तरह विभिन्न प्रकार के तेलों जैसे नारियल का तेल, तिल का तेल, सरसों का तेल तथा होम्योपैथी चिकित्सा में प्रयुक्त कैलेण्डुला, अर्निका, सल्फर आदि मल्हमों को भी चुंबकित किया जा सकता है। इन तेलों का उपयोग बालों के लिए अथवा चर्म रोगों के लिए काम में लाया जा सकता है, जैसे चमड़ी का फट जाना, सूख जाना अथवा किसी प्रकार का घाव होना।

त्वचा, रक्तवाहिनियाँ, वसा तथा नाड़ियाँ केवल बिजली और चुंबक के चालक ही नहीं हैं, बल्कि वे चुंबकों को उपयुक्त रूप से प्रभावित भी करते हैं। अब एक लंबे समय से चुंबकित जल का प्रयोग विभिन्न रोगों के इलाज के लिए किया जा रहा है, क्योंकि इसमें उपचारक शक्तियाँ समा जाती हैं। सप्राण शरीर में 70 से लेकर 80 प्रतिशत तक पानी की मात्रा होती है, अतः चुंबक चिकित्सा विज्ञानियों द्वारा शरीर के विभिन्न कार्यों को गति देने वाले इस अद्भुत द्रव्य के चमत्कारी प्रभाव का उपयोग रोगोपचार के लिए किया गया है।

यह रोगनाशक जल पेट के अंदर समा जाता है और वहाँ से अपने रोगोपचारक गुणों के साथ रक्त नलियों में प्रविष्ट हो जाता है। और अंततः जीवित ऊतकों तक पहुँच जाता है। यह रोगनाशक जल खून साफ करने तथा अनावश्यक पदार्थों को पेशाब के साथ बाहर निकालने में भी सहायक होता है। यह रोगनाशकजल धमनियों के अंदर जमी हुई कोलेस्ट्रॉल की परत को धीरे-धीरे घोलकर बाहर निकाल देता है।

फ्रांस जैसे कई देशों में कुछ ऐसे प्राकृतिक झरने पाए जाते हैं जिनकी गठिया, मोटापा तथा पेशाब संबंधी असंख्य रोगों में उपचारक उपयोगिता पाई गई है। फ्रांस में ईवियाँ नामक स्थान है जहाँ पर लोग बड़ी संख्या में आते हैं। यहाँ कुछ झरनों का पानी पीने से थकान, मेदवृद्धि, संधिस्थलों की तकलीफों तथा मूत्र मार्ग के रोगों में लाभ होता है। यह पानी 'ईवियाँ वॉटर' के नाम से जाना जाता है। इस पानी को बोतलों में भरा जाता है और फ्रांस भर में इसका उपयोग होता है।

यह 'ईवियाँ वॉटर' कुछ और नहीं है, यह प्राकृतिक चुंबकांतित पानी ही है। भारत, रूस तथा अमेरिका में भी ऐसे झरने हैं जहाँ पर बीमारियों से मुक्त होने के लिए लोगों के झुंड उमड़ते हैं। रूस ने असंख्य रोगों, विशेष रूप से मूत्र प्रणाली से संबंधित रोगों के लिए चुंबकांतित जल का प्रयोग करने की पहल की है तथा वे इस प्रकार के जल को चमत्कारी जल कहकर पुकारते हैं। रूस तथा भारत के अनेक औषधालयों में गुर्दे की पथरी गलाने और उससे छुटकारा पाने के लिए चुंबकांतित जल का प्रयोग किया जाता है।

जब पानी को कुछ समय के लिए लौहचुंबक के संपर्क में रखा जाता है तब वह चुंबकीय क्षेत्र से प्रभावित हो जाता है और उसमें चुंबकत्व आ जाता है। ऐसा जल यदि लंबे समय तक पिया जाए तो निश्चित ही शरीर पर प्रभाव डालता है। पेट में से चुंबकांतित पानी का शोषण होकर रक्तवाहिनियों के द्वारा वह शरीर के प्रत्येक कोष तक पहुँच जाता है।

चुंबकांतित पानी के निरंतर प्रयोग से पाचन क्रिया सुधरती है, भूख खुलती है और अम्ल के स्राव का नियंत्रण होता है। इस पानी ने अनेक स्त्रियों को मासिक स्राव की कठिनाइयों से मुक्ति दिलाई है। यह पानी रक्त परिभ्रमण में भी वेग लाता है। इस कारण नसों में होने वाला जमाव कम होता है। नसें जमाव मुक्त होते ही रक्त परिभ्रमण सुधरता है और हृदय की कार्यक्षमता बढ़ती है। ज्वर, दर्द, दमा, जुकाम, खाँसी आदि में तथा विष के प्रभाव को नष्ट करने में भी यह पानी उपयोगी रहा है। पानी की भाँति दूध को भी चुंबकांतित बनाकर उसके पोषक तत्वों में वृद्धि की जा सकती है।

पानी को लौहचुंबकांतित बनाने के लिए लगभग 2000 से 3000 गॉस की शक्ति वाले बड़े लौहचुंबक चाहिए। आकार की दृष्टि से ये लौहचुंबक चपटे और वर्गाकार या आयताकार होने चाहिए। गोल चुंबक भी चल सकते हैं। पानी भरने के लिए वर्गाकार या आयताकार काँच की बोतल लें ताकि संपूर्ण लौहचुंबक बोतल के संपर्क में रह सके।

सामान्यतः 24 घंटे में चुंबकांतित पानी तैयार होता है। फिर भी यदि उसका उपयोग जल्दी करना हो तो 12 से 14 घंटों का पानी भी चल सकता है। यदि पानी को पूर्ण चुंबकीय क्षेत्र वाला बनाना हो, तो बोतल की एक ओर उत्तर ध्रुव और दूसरी ओर दक्षिण ध्रुव रहे, इस ढंग से लौहचुंबकों को जमाया जाना चाहिए। इसमें भी लौहचुंबक का उत्तरी ध्रुव उत्तर दिशा की ओर तथा दक्षिणी ध्रुव दक्षिण दिशा के सामने रहे, इस ढंग से चुंबक को रखें। सामान्य परिस्थितियों में इस प्रकार के पूर्ण चुंबकीय क्षेत्र वाले पानी का उपयोग करना ठीक रहता है।

बोतल को डॉट लगाकर रखें। लौहचुंबकांतित पानी को न तो गर्म करें और न ही फ्रिज में रखें। कुछ चिकित्सक पानी के भरे हुए गिलास या चौड़े मुँह के मर्तबान के अंदर लौहचुंबक रखते हैं, किन्तु इस तरीके से लौह चुंबकों को जंग लगने की संभावना रहती है।
चुंबकीय तरंगें काँच के आर-पार आसानी से निकल जाती हैं, इसलिए लौहचुंबक बाहर से भी पानी को पूर्णतः प्रभावित कर सकते हैं। इस प्रकार तैयार किए गए पानी को लगभग 5-6 दिनों तक कमरे के अंदर उपयोगी रखा जा सकता है।

1 comment:

  1. चुंबक चिकित्सा बहुत ही उपयोगी चिकित्सा पद्धति है लेकिन चिकित्सकों के अभाव में इसका समाज को पूर्ण लाभ नहीं मिल पा रहा

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