Wednesday, August 19, 2009

रंगों से भी उपचार संभव

रंगों से भी उपचार संभव

मानव जीवन में रंगों का उतना ही महत्व है, जितना कि पेड़-पौधों में। प्रत्येक व्यक्ति के चारों ओर अदृश्य प्रकाश का आवरण रहता है, जिसे आभामंडल कहा जाता है। यह आभामंडल प्रत्येक व्यक्ति में अलग-अलग रंग का होता है। व्यक्ति का आभामंडल कभी स्थिर नहीं रहता बल्कि हमेशा परिवर्तित होता रहता है। यह परिवर्तन उस व्यक्ति के मिजाज अथवा भावना में बदलाव या उसके शरीर में किसी बीमारी के आगमन का सूचक है। आभामंडल में आए इस परिवर्तन का अनुमान कुछ विशेषज्ञ उस व्यक्ति में आए भावनात्मक परिवर्तन को देखकर लगा लेते हैं। ये विशेषज्ञ उस व्यक्ति में उत्पन्न बीमारी की चिकित्सा भी समुचित रंग के प्रकाश के उपयोग द्वारा करते हैं। इस चिकित्सा को रंग चिकित्सा (कलरथैरेपी) कहते हैं।

रंग चिकित्सा सूर्य के प्रकाश के समुचित उपयोग पर निर्भर करती है। सूर्य के प्रकाश में सात रंग के प्रकाश (बैंगनी, नीला, आसमानी, हरा, पीला, नारंगी तथा लाल) मौजूद रहते हैं। जब सूर्य का प्रकाश हमारे शरीर में प्रवेश करता है तो यह अपने विभिन्न रंगों के घटकों में विघटित हो जाता है। सभी घटक शरीर के विभिन्न अंगों द्वारा उनकी पसंद तथा आवश्यकता के अनुसार ग्रहण कर लिए जाते हैं। फिर ये घटक उन अंगों की सामान्य प्रक्रिया प्रणाली को अंजाम देने में सहायक होते हैं। वस्तुतः मानव शरीर के विभिन्न अंगों (मस्तिष्क, हृदय, गुर्दा, फेफड़ा, आँत, जिगर, प्लीहा इत्यादि) के रंग अलग-अलग होते है। जब हम बीमार पड़ते हैं तो इन अंगों में मौजूद रासायनिक पदार्थों के संतुलन में भी परिवर्तन आता है। ऐसी स्थिति में रंग चिकित्सा से उस अंग का रासायनिक तथा रंग संतुलन पुनः स्थापित हो जाता है और व्यक्ति रोगमुक्त हो जाता है।

रंग चिकित्सा हेतु किसी विशेष अंग पर रंगीन प्रकाश कई विधियों द्वारा डाला जा सकता है। एक विधि में सूर्य के प्रकाश से किसी विशेष रंग का प्रकाश प्राप्त करने हेतु फिल्टर के रूप में रंगीन शीशे का प्रयोग किया जाता है। ये फिल्टर विभिन्न मोटाइयों के होते हैं तथा इनमें ऐसी क्षमता होती है कि ये भिन्न-भिन्न तीव्रता के रंगीन प्रकाश उत्पन्न कर सकते हैं। उदाहरणार्थ यदि हरे रंग का प्रकाश प्राप्त करना है तो कुछ फिल्टर हल्का हरा प्रकाश पैदा करते हैं, और कुछ अन्य फिल्टर गहरा हरा प्रकाश।

रंग चिकित्सा के कुछ विशेषज्ञ रोगी का इलाज करने हेतु रत्नों का उपयोग कुछ अन्य तरीके से करते हैं। इस विधि में उपयुक्त रंग वाले रत्न को अल्कोहल अथवा किसी खाद्‍य तेल में डुबोकर कई दिनों तक छोड़ दिया जाता है। इसके फलस्वरूप अल्कोहल या तेल में उस रत्न के गुण समाहित हो जाते हैं। फिर इस अल्कोहल अथवा तेल को कुछ समय तक प्रतिदिन निश्चित खुराक में सेवन करने का परामर्श रोगी को दिया जाता है।

रंग चिकित्सा की एक और विधि भी है। इस विधि में एक सादा बोतल में साफ पानी भर लिया जाता है। फिर इस बोतल को उपयुक्त रंग के जिलेटिन पेपर से पूरी तरह ढँक कर धूप में तीन-चार घंटे तक रख दिया जाता है। धूप से विशेष रंग का प्रकाश प्राप्त करने के कारण बोतल के पानी में औषधीय गुण विकसित हो जाते हैं। फिर इस जल को निश्चित खुराक में प्रतिदिन सेवन करने का परामर्श रोगी को दिया जाता है।

विशेषज्ञ आजकल रंग चिकित्सा द्वारा विभिन्न रोगों पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन कर रहे हैं। इन अध्ययनों के अनुसार दमा, पीठ के दर्द, थकावट तथा स्वरयंत्र संबंधी रोगों में हरे रंग के प्रकाश का सेवन काफी लाभदायक है। हमारे शरीर में यह क्षमता होती है कि विभिन्न अंग अपनी आवश्यकता के अनुसार सूर्य के प्रकाश में मौजूद विभिन्न रंगों के प्रकाश को ग्रहण कर लें। हमारा पूरा शरीर भी उसी प्रकार से आचरण करता है। उदाहरणार्थ अगर मौसम बहुत गर्म है तो वह नीले रंग के प्रकाश को अधिक ग्रहण करेगा। इसी प्रकार ठंड के मौसम में वह लाल प्रकाश को ज्यादा ग्रहण करेगा।

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