Thursday, August 20, 2009

चक्रासन से बनी रहे मेरुदंड की सेहत

चक्रासन से बनी रहे मेरुदंड की सेहत

ऐसा माना है जाता है कि मेरुदंड का लचीलापन व्यक्ति को वृद्धावस्था से दूर रखता है। साधारणतः हम शरीर को दैनिक उपक्रम में जितनी भी गति देते हैं, वह आगे की ओर झुकने की क्रियाएँ मात्र होती हैं। ऐसा कोई कार्य नहीं होता जब हम पीठ को पीछे की ओर मोड़ें। ऐसे में पृष्ठवंशीय मेरुरज्जू अपनी पीछे की ओर झुकने की क्षमता खो बैठता है। पीठ में कड़ापन आ जाता है। आगे की ओर अत्यधिक झुकाव से मांसपेशीय खिंचाव के दुष्परिणाम गर्दन, कमर व पीठ दर्द के रूप में उपस्थित होते हैं, अतः वे आसन जिनमें पीठ विपरीत दिशा में गति करे, जरूरी हैं। प्राथमिक तौर पर भुजंगासन, शलभासन, धनुरासन, उष्ट्रासन करने के उपरांत 'चक्रासन' सर्वाधिक लाभदायी है, इसे पीठ के बल लेटकर किए जाने वाले आसनों की श्रृंखला में सर्वोत्कृष्ट माना जाता है। इसकी विधि इस प्रकार है-

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पीठ के बल लेट जाइए। घुटने मुड़े हों, एड़ियाँ नितंबों को छूती रहें। हथेलियाँ, जमीन पर घुमाकर रखें, जिससे उँगलियों का अग्रभाग कंधे की ओर रहें।

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दोनों पैरों और दोनों हाथों के मध्य आपसी अंतर कंधे के बराबर रखिए।

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धीरे-धीरे पूरे धड़ को ऊपर उठाइए। सिर को भी धीरे-धीरे इस स्थिति में लाइए कि शरीर के ऊपरी हिस्से का भार सिर के सबसे ऊपरी हिस्से पर पड़े।

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शरीर को पूरी गोलाई में ऊपर उठाइए।

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इस अभ्यास में निष्णात होने के बाद दोनों हाथों व पैरों को नजदीक लाने का प्रयत्न करें।

साधारणतः चक्रासन का अभ्यास श्वास को अंदर रोककर किया जाता है। चक्रासन के पश्चात आगे की ओर झुकने वाला आसन करना चाहिए।

चक्रासन के लाभ इस प्रकार हैं-

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यह मेरुदंड का संपूर्ण व्यायाम है।

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पीठ की मांसपेशियों तथा उदर संस्थान के लिए लाभकारी है।

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हाथों को पुष्ट व सबल बनाता है।

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चेहरे पर रक्त संचार बढ़ाकर उसे कांतिमय बनाता है।

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समस्त नाड़ियों तथा ग्रंथिस्राव को प्रभावित करता है।

उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, अस्थि दोष, नेत्र दोष, कान की व्याधि तथा पेट के आंतरिक घाव की स्थिति में चक्रासन वर्जित है। प्रारंभ में इसे योग निरीक्षक के मार्गदर्शन में ही करना चाहिए।

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